आप सभी के भीतर बैठे उस परमात्मा को मैं प्रणाम करता हूँ। अभी कुछ देर पहले हमने देखा एक बहुत ही सुन्दर म्यूजिकल प्रोग्राम। क्या किसी ने इसका प्रमुख सन्देश समझा? नारी! वो कैसे जीवन का उत्सव मना रही है। यह तभी संभव है जब वो स्त्री प्रेम में है, आनंद में है, परमानन्द में है। तभी जीवन एक उत्सव बन सकता है। पर आज कल क्या हो रहा है ये हम सबको पता है। एक नारी की चेतना की स्थिति ऐसी है जैसे वो एक व्यक्ति नहीं वस्तु है।
मैं एक सुन्दर सन्देश देना चाहूंगा जो संगीत के सात स्वर हैं – सा, रे, ग, मा, प्, ध, नीं, सा पर आधारित है। ये सात का आंकड़ा बड़ा ही खूबसूरत है। सात का आंकड़ा इसका आध्यात्म के साथ क्या ताल मेल है ये मैं आपको बताना चाहूंगा। जो महिला है, उसके भीतर जो सामर्थ्य है वो पुरुष से सात गुना ज़्यादा है। जब वो क्रोध में आती है तो पुरुष से सात गुना ज़्यादा क्रोध उसको आता है। यही क्रोध पार्वती को काली बनाता है। जब वो देने में आती है तो अन्नपूर्णा हो जाती है। दाता बन जाती है। और उसके भीतर जो दर्द सहने की शक्ति है वो पुरुष में नहीं है इसीलिए ईश्वर ने भी स्त्री को ही माँ बनने योग्य चुना। पुरुष कभी गर्भ धारण नहीं कर सकता। स्त्री को ही इस योग्य चुना। स्त्री का गर्भ ही इस योग्य है कि उसमें एक संतान जन्म ले सके।
और ये सात का जो आंकड़ा है इसे अध्यात्म से जोड़ते हुए मैं बताना चाहूंगा कि हमारे भीतर भी सात चक्र होते हैं। मूलाधार से सहस्त्रार तक। जिसके यह चक्र जागृत होते हैं वो आध्यात्मिक रूप से अपना जीवन जी सकता है।
सबसे अच्छा जीवन पूरी तरह से जीना है और आप सात गांठों को सक्रिय करके पूरी तरह से कैसे रह सकते हैं। जो आपके भौतिक शरीर में नहीं किन्तु सूक्ष्म शरीर में विद्यमान हैं। और जब आप अपने सब चक्रों को सक्रीय कर लेते हैं तो जीवन एक उत्सव हो जाता है। तब आप नृत्य कर सकते हैं गा सकते हैं। और ये विषय बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जीवन के लिए। आज का जो विषय दिया गया है मुझे वो है – डर पर काबू पाना और बहुतायत में जीवन जीना। क्यूंकि भय ने महिलाओं के अंदर बहुत सी परेशानियों को जन्म दिया है। मैंने देखा की भय ने सबको इतनी गहराई से जकड़ रखा है तो मैंने उसका गहराई से अध्ययन किया और उसकी जड़ तक पहुँच कर यह जानना चाहा की ऐसा क्या है जिसकी वजह से स्त्री की जो सक्षमता है वो उसको पूरा उजागर नहीं कर पाती। तो मैंने सबसे बड़ा दोषी पाया वो धर्मों को पाया और मंदिरों को पाया। मस्जिदों को पाया। आज हम चंद्रायन पर जाने की सोच रहे हैं। लेकिन आज भी मंदिरों में जाने के लिए नारी को ऐसे दर्द का सामना करना पड़ता है जहाँ पर उसके साथ अछूत सा व्यवहार किया जाता है यह कह कर की ये मंदिर सिर्फ पुरुषों के लिए है।
एक बहुत सुन्दर संवाद मुझे याद आता है। यह मीरा के समय की बात है। मीरा के हृदय में कृष्ण प्रेम जो था यह तो सभी को बहुत अच्छे से ज्ञात है। वो तो दिन दिन रात रात कृष्ण की वंदना करतीं थीं।
खर्च न खोटे चोर न लुटे दिन दिन बढ़त सवायो
पयोजी मैनें राम रतन धन पायो
माँ मीरा एक दिन वृन्दावन की गलियों में घुमते घुमते एक कृष्ण मंदिर में चरण रखने ही जा रहीं थीं तो वल्लभाचार्य जो कि एक बहुत ही प्रकांड पंडित थे उन्होंने माँ मीरा का रास्ता रोक दिया। और मीरा के साथ हज़ारों की तादाद में भीड़ क्यूंकि सब देखना चाहते थे कि राज घराने से हैं और सुना है की सन्यासिन हो गयीं तो हम भी देखना चाहते हैं कैसी लगतीं हैं, कैसी उनकी आभा हैं, कैसी उनकी छवि है। सुना है कि मुख पर बहुत प्रसन्नता है तो हम भी उन्हें देखना चाहते हैं। तो जब वहां पर वल्लभाचार्य ने उनका रास्ता रोका तो माँ मीरा ने यह पूंछा कि वल्लभाचार्य मुझे कारण बताएं की किस कारण मेरा रास्ता रोका। तो वल्लभाचार्य ने कहा की यहाँ केवल पुरुषों का ही स्थान है। यहाँ स्त्रियां आमंत्रित नहीं हैं। शास्त्रों में आत्मा स्त्रीलिंग और परमात्मा पुलिंग माना गया है।
तो माँ मीरा बहुत सुन्दर सा जवाब देतीं हैं। कहतीं है कि पूर्ण पुरुषार्थ तो अंदर ही बैठा है बाकी हम सब तो स्त्रियां ही हैं। जो जीवात्मा मेरे भीतर है, वही तो आपके भीतर भी है। तो इस हिसाब से देखा जाए तो मंदिर में तो आपका आना भी निषेध है। स्तब्ध रह गए थे वल्लभाचार्य यह सुन कर कुछ कह न सके। और सत्य यह है की जिसने उस परम को पाया है, जिसने ज्ञान प्राप्त करके यह जाना कि सत्य क्या है उन्होंने कभी भी स्त्री पुरुष में भेद नहीं किया। उन्हें पता है यह ऊर्जाएं हैं – पुरुष और स्त्री – शिव और शक्ति हैं।
तो माँ मीरा बहुत सुन्दर सा जवाब देतीं हैं। कहतीं है कि पूर्ण पुरुषार्थ तो अंदर ही बैठा है बाकी हम सब तो स्त्रियां ही हैं। जो जीवात्मा मेरे भीतर है, वही तो आपके भीतर भी है। तो इस हिसाब से देखा जाए तो मंदिर में तो आपका आना भी निषेध है। स्तब्ध रह गए थे वल्लभाचार्य यह सुन कर कुछ कह न सके। और सत्य यह है की जिसने उस परम को पाया है, जिसने ज्ञान प्राप्त करके यह जाना कि सत्य क्या है उन्होंने कभी भी स्त्री पुरुष में भेद नहीं किया। उन्हें पता है यह दो ऊर्जाएं हैं – पुरुष और स्त्री – शिव और शक्ति, यिन और यैंग। जो अर्धनारीश्वर स्वरुप है भगवान् शिव का उसको हम धर्म से हट कर देखें तो हम सभी के भीतर वो मजूद है। स्त्री और पुरुष दोनों के ही तत्व शरीर के भीतर मौजूद हैं। स्त्रैण ऊर्जा और पुल्लिंग ऊर्जा। दोनों हमारे शरीर में हैं। और भगवन शिव का अर्धनारीश्वर स्वरुप वह सभी धर्मों से परे है। वो जीवन का सत्य है। आधा स्त्री और आधा पुरुष। और ये हमारी ज़िन्दगी मेंउतारने योग्य है। अगर हम चाहते हैं नारी को सक्षम बनाना तो हमें स्त्रियों को भी बराबरी का दर्जा देना होगा। आधा शरीर पुरुष का और आधा स्त्री का इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि परमात्मा कभी भेदभाव नहीं करता स्त्री और पुरुष में। और जिसमें परमात्मा कभी भेद भाव नहीं करता तो इंसान कैसे भेद भाव कर सकता है।
मैनें इस विषय पर अध्यन किया तो मैंने पाया कि एक अनुसन्धान हुआ था स्त्रियों को लेकर। जब ये स्त्रियां अपने मासिक धर्म में थीं तो उनसे अचार और पापड़ बनवाये गए। क्यूंकि हमारे यहाँ आज ऐसी सोच है कि उस समय में जब वो मासिक धर्म से गुज़र रहीं होतीं हैं तो वो शुद्ध नहीं होती हैं। और बहुत अच्छे घरों, में पढ़े लिखे लोगों के घरों में लोग उस समय उन्हें बाहर रहने को कहते हैं और कुछ चीज़ों को छूने से मना करते हैं। तो अनुसन्धान में ६०० स्त्रियां अचार और पापड़ बनाती हैं। देश के बहुत नामी वैज्ञानिक वहां मौजूद थे और अचार और पापड़ को बना कर स्टोर कर लिया गया। और एक वर्ष बाद उसको निकाल कर देखा गया तो वो बिलकुल ठीक था। उसमें कोई खराबी नहीं थी। तो ये जितनी भी गलत धारणाएं बनाई गई हैं उन्हें हमें तोड़ना होगा। क्यूंकि यदि हमें ऊपर उठना है तो हमें अपनी धारणाओं को, अपने तौर तरीकों को बदलना होगा। धारणाओं और तौर तरीकों को बदलना बहुत आवश्यक है। और यह बदलाव तभी होगा जब हम सभी प्रकार के पैटर्न्स को तोड़ेंगे जो हमने अपने जीवन में बनाये हैं। और बनाया किसने है इनको। बचपन से हमको सिखाया जाता है की रक्षा बंधन का त्योहार है। रक्षा बंधन पर एक बहन है, उसका एक छोटा भाई है जिसको बचपन से उसने पाला। और जब वो बड़ा होता है तो कहता है बहन तू मुझे राखी बाँध , मैं तेरी रक्षा करूँगा। जब वह छोटा था तो उसकी नाक पोंछती थी। अब वो कहता है कि रक्षा करूँगा।
हंसी का पात्र है। जो इस तरह की बातें हैं , जो मान्यताएं बनीं हैं, ये बहुत ही हास्यप्रद हैं। अब करवा चौथ का त्यौहार है। करवा चौथ का ऐसा व्रत है, हमारे देश में ऐसी परम्पराएं हैं, और इतनी गलत मान्यताएं हैं की कहते हैं यदि व्रत नहीं रखा तो पति की आयु घट जाएगी। तो इस हिसाब से तो अमेरिका में सभी पतियों को मर जाना चाहिए था। फिर तो कोई जिन्दा ही नहीं रहना चाहिए था। जब तक इन रूढ़िवादी मान्यताओं को ख़त्म नहीं करेंगे तब तक हम एक नई ज़िन्दगी नहीं शुरू कर सकते। और बराबरी तब तक नहीं आएगी जब तक इसे हम गहराई से नहीं समझेंगे। और इसके लिए औरत और मर्द दोनों को ही साथ निभाना पड़ेगा एक दूसरे का। आदमी के अंदर जो सबसे ज़्यादा पाई जाने वाली चीज़ है वो है अहंकार। और इसी की वजह से वो औरों को नीचे दिखाना चाहता है। इसके ऊपर भी मैनें सोचा कि पति शब्द है। जैसे कहते हैं की ये पति हो गया है। पति का अर्थ क्या है , करोड़पति यानी करोड़ों का मालिक, अरबपति यानी अरबों का मालिक। पति का मतलब होता है मालिक। आप खुद सोचिये की पति और पत्नी जब शादी होकर घर आएंगे तो एक जब मालिक होगा तो दूसरा क्या होगा। बोलने की ज़रुरत ही नहीं है, आपके मन में स्वयं विचार आ जायेगा।
तो जब एक मालिक है तो दूसरा तो दास होगा ही होगा। तो इस पति शब्द को मैनें गहराई से समझा तो जाना कि यह जो दास प्रथा है ये हज़ारों सालों से चलती चली आ रही है। और कॉर्पोरेट जगत के अंदर भी जहाँ महिलाएं इतनी पढ़ी लिखीं हैं वहां पर भी उनके साथ ज्यादती होती होती है। दुर्व्यवहार होता है अत्याचार होता है। और अगले दिन जब वो गॉगल लगा के जातीं हैं काम पर और कोई उनसे पूंछता है की क्या हुआ तो वो कहतीं हैं की मैं गिर गयी थी। शर्म की बात है। २०१९ में अगर औरत पिटती है अपने घरों में तो यह बहुत शर्म की बात है। और सिर्फ औरत नहीं पिटती। याद रखिये अगर औरत पिटती है तो यह हमारे देश की इज़्ज़त भी घटती है। यह अपने आप से सोचें की हम कहाँ खड़े हैं क्या करना चाहते हैं। आप अगर इतिहास उठा कर देखें तो बुद्ध ने भी स्त्रियों को संन्यास देने से मना कर दिया था। महावीर ने भी स्त्रियों से कहा की तुम बुद्ध नहीं बन सकतीं। अगले जन्म में तुम्हें पुरुष बनना होगा तभी प्राप्त कर सकती हो बुद्धता को। स्त्री का क्या दोष है की वो स्त्री है। महावीर और बुद्ध का जो मार्ग है वो है ध्यान का मार्ग और स्त्री का जो मार्ग है वो है प्रेम का मार्ग। स्त्री प्रेम में जब डूबती है वो तब ध्यानस्थ होती है। जब स्त्री पूर्ण रूप से प्रेम में होती है क्यूंकि यात्रा मैं से तू तक की है। मैं मेरा और तू परमात्मा। जो अंतिम लक्ष्य है वो तो वापस परम धाम जाने का ही है। चाहे किसी धर्म में चले जाएँ किसी ज्ञानी बुद्ध के पास चले जाएँ वो तो यही कहेगा की “वापस स्तोत्र तक” यात्रा मैं से तू तक की है। वो जब प्रेम में आती है स्त्री तो वो तू खो देती है और बचता है सिर्फ मैं।
और जब और गहराई में जाती है ध्यानस्थ होती है तो मैं भी समाप्त हो जाता है। जो शेष रह जाता है वो है निर्विकल्प समाधी। और पुरुष का मार्ग है ध्यान का। इसीलिए बुद्ध और महावीर ने स्त्रियों को ध्यान के मार्ग पर मना किया की यदि यहाँ पर स्त्रियां आ जाएँगी तो हलचल मचने लग जाएगी। और ऐसा हुआ भी। बुद्ध ने खुद कहा की मेरा धर्म ५००० वर्ष तक चलता और अब ५०० साल भी लड़खड़ा कर चले।
क्यूंकि जैसी ही स्त्रियों ने संन्यास ग्रहण किया पुरुषों का डांवाडोल हो गया, वो अपनी समाधी से विचलित हुए और उनका ध्यान भंग हो गया। मैंने उसको देख कर सभी लोगों से कहा आप सभी मिलकर हमारी फाउंडेशन में आये। सब मिलकर भाग लें। क्यूंकि ऐसा ध्यान भी किस काम का जो लड़खड़ा जाए। जो मिलकर चार कदम भी न चल पाए। और मैंने सोचा बहुत अच्छा है जो पहले से ही चले जाएँ। क्या ध्यानी बनेंगे वो लोग जो स्त्री के प्रेम से अपनी ध्यान समाधी तोड़ दें। असली ध्यान समाधी तो वो है की स्त्री प्रेम करती रहे और आपकी समाधी खंडित न हो। इसलिए जो मार्ग स्त्री के लिए है वो है प्रेम का मार्ग और पुरुष के लिए है ध्यान का मार्ग। इसलिए जब स्त्री पूर्ण रूप से प्रेम में होती है तब वो ध्यानस्थ होती है। और जब पुरुष पूर्ण रूप से ध्यान में होता है तब उसके भीतर प्रेम की एक अविरल धारा बहने लगती है और उसके बाद जब दोनों समन्वय में आते हैं और उसके साथ जीवन जीते हैं वो है समानता। इसलिए अगर हमको इस बीमारी को जड़ से ख़त्म करना है तो सशक्तिकरण से ज़्यादा महत्वपूर्ण है समानता पर बात करना।
और जब हम समानता के बारे में सोचते हैं तभी जो स्त्री पुरुष का अनुपात नीचे है वो बराबर का दर्ज़ा ले पायेगा। मैं अभी एक अनुसन्धान कर रहा था तो ख़ुशी सूचकांक (हैप्पीनेस इंडेक्स) जो भारत का है वो २०१७ में १७० स्थान है और आज १४० हो गया है। हम बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी पीछे हैं। और ये और दिन पर दिन बढ़ता जायेगा। कोई बड़ी बात नहीं है की अगले सेशन में जब हम मिलें तो वो २०० से भी ऊपर हो जाए। लकिन जो चीज़ इसको रोक सकती है वो है समानता। हमें इस बात को समझाना होगा और एक साथ आगे आना होगा। तो बस मैं आप सभी लोगों से यह कहना चाहुंगा कि आप सभी स्त्री और पुरुष इसमें आगे आएं और अपना पूरा योगदान दें। जिससे एक समानता आये। जेंडर इक्वलिटी आये। और महिलायें जो शोषित होती आ रहीं हैं वो शोषण ख़त्म हो। और समाज में प्रेम, शांति व आनंद फैले।इसके साथ आप सभी का धन्यवाद।